खत्म हो जाएगा एअर इंडिया का सफर? देश की सरकारी एयरलाइन का भविष्य खतरे में, सरकार ने कहा- या तो प्राइवेटाइजेशन होगा या बंद होगी कंपनी
एअर इंडिया अब उस दौर में पहुंच गई है, जहां या तो यह बिकेगी या फिर बंद हो जाएगी। केंद्रीय मंत्री हरदीप सिंह पुरी ने मंगलवार को संसद में सीधे इस बात की घोषणा कर डाली। उन्होंने कहा कि सरकार के पास दो विकल्प हैं। या तो इसे बेच दे या बंद कर दे। इस बयान के बाद अब यही लग रहा है जल्द ही एअर इंडिया के खरीदार नहीं मिले तो यह बंद हो सकती है। इस समय कंपनी पर 58,000 करोड़ रुपए का कर्ज है। साल 2018-19 में एअर इंडिया घाटा देनेवाली दूसरी सबसे बड़ी सरकारी कंपनी थी।
20 सालों से बिक रही है एअर इंडिया
27 मई 2000 में सरकार ने पहली बार एअर इंडिया में 60 प्रतिशत हिस्सेदारी बेचने को मंजूरी दे दी थी। हालांकि उस समय बात नहीं बन पाई थी। तब से यह बेचने का सिलसिला चल रहा है। जब नीति आयोग ने मई 2017 में सार्वजनिक क्षेत्र के विनिवेश की सिफारिश की थी उस समय भी एअर इंडिया का नाम था। 2018 में भी इसकी 76 फीसदी हिस्सेदारी बेचने के लिए टेंडर मंगाए गए थे। इसके बाद 12 दिसंबर 2019 को हरदीप सिंह पुरी ने संसद में एअर इंडिया की 100 प्रतिशत हिस्सेदारी बेचने की घोषणा की जबकि इससे पहले 2018 में इसमें 76 प्रतिशत हिस्सेदारी बेचने की घोषणा हुई थी।
जानें कब-कब कंपनी के लिए अहम निर्णय लिए गए ?
- 2000 में पहली बार एअर इंडिया को बेचने की बात सामने आई।
- 2003 में नरेश चंद्रा कमेटी ने इंडियन एयरलाइंस और एअर इंडिया के प्राइवेटाइजेशन का प्रस्ताव दिया जिसका खूब विरोध हुआ।
- 2007-08 में एअर इंडिया में इंडियन एयरलाइंस का विलय कर दिया था।
- कांग्रेस की सरकार के समय भी बेचने को लेकर बात उठी थी लेकिन मनमोहन सरकार ने इस प्रस्ताव को कोल्ड स्टोरेज में डाल दिया और प्रफुल्ल पटेल के नेतृत्व में दोनों राष्ट्रीय सेवाओं को बढ़ाने पर ध्यान दिया जाने लगा।
- 2018 में पहली बार टेंडरिंग हुई, इसमें 76 प्रतिशत हिस्सेदारी बेचने की घोषणा हुई थी।
- 2020 में दूसरी बार टेंडरिंग हुई इसमें सरकार ने 100 प्रतिशत हिस्सेदारी बेचने की बात कही और अब तक 4 बार तारीख को आगे बढ़ाया जा चुका है।
मोदी सरकार में फिर प्राइवेटाइजेशन पर फैसला पर क्यों लिया गया?
- सरकार नहीं कर सकती अब मदद- हरदीप सिंह पुरी ने मंगलवार को साफ कह दिया कि एअर इंडिया पर इतना अधिक कर्ज है कि सरकार इसकी कोई मदद नहीं कर सकती है। इस सेवा को चलाए रखने के लिए इसका निजीकरण करना अनिवार्य है। सरकार ने पहले ही साफ कर दिया है कि वो एअर इंडिया को अब कोई अतिरिक्त फंड नहीं दे सकती है।
- भारी कर्ज- परिचालन में खराबी, प्रबंधन का ढीला रवैया और निजी क्षेत्र के ऑपरेटरों के साथ प्रतिस्पर्धा करने में असमर्थ रहने के कारण एअर इंडिया को प्राइवेटाइज्ड करना ही उचित समझा जा रहा है। साथ ही कंपनी पर भारी भरकम कर्ज सरकार के फंडिंग पर पूरी तरह से निर्भर है। शुरूआत से ही कंपनी में राजनीतिक दखलअंदाजी को कंगाली की बड़ी वजह कह सकते हैं।
- बेलआउट पैकेज की विफलता- विमानन कंपनी वर्ष 2012 की यूपीए सरकार के दौर से ही बेलआउट पैकेज पर ही चल रही है। यूपीए सरकार ने द्वारा 2012 में 30,000 करोड़ रुपए का राहत पैकेज दिया था, उसी के बल पर यह अभी तक उड़ान भर रही है। इसके बाद 2013 में तत्कालीन यूपीए सरकार ने 2020-21 तक कंपनी में 30,231 करोड़ रुपए के इक्विटी इंफ्यूजन की मंजूरी दी थी। एयरलाइन को इसमें से करीब 27,000 करोड़ रुपए मिल चुके थे। बावजूद कोई असर नहीं दिखा। हालांकि संचालन में सुधार नहीं होने के कारण हर साल कंपनी का घाटा बढ़ता ही गया।
- सरकार को निवेशक मिलने की उम्मीद नहीं - बता दें जब पहली बार मोदी सरकार ने एअर इंडिया की हिस्सेदारी बेचने की बात कही थीं तब एक साल तक तो खरीदारों ने रूचि नहीं दिखाई। सरकारी सूत्रों ने पहले ही स्पष्ट कर दिया है कि कंपनी की आर्थिक स्थिति को देखते हुए सरकार को निवेशक मिलने की बहुत ज्यादा उम्मीद नहीं है।
अब कहां आ रही है दिक्कतें ?
दरअसल, कंपनी पर 58 हजार करोड़ रुपए का भारी भरकम कर्ज है। सरकार ने हर टेंडर में यह शर्त रखी की जो भी इसे खरीदेगा उसे कम से कम 23 हजार करोड़ रुपए का कर्ज भी भरना होगा। बाकी का कर्ज एअर इंडिया असेट होल्डिंग को ट्रांसफर कर दिया जाएगा। सबसे प्रमुख वजह यही रही है। दूसरी बात, एअर इंडिया को बेचने के लिए एंटिटी वैल्यू को आधार बनाया जाता था। जबकि वैल्यू का सही आधार एंटरप्राइज लेवल पर होता है। हालांकि, अब सरकार कर्ज और वैल्यू दोनों मामलों में ढील देने की योजना बना रही है ताकि किसी तरह महाराजा को बेचा जा सके। हरदीप सिंह पुरी के बयान के बाद इसके नियमों में ढील देकर इसे बेचा जा सकता है।
फंडिंग से बचाने की कोशिश की गई थी
वर्ष 2012 से अब तक सरकार एअर इंडिया को बचाने के लिए लगभग 30,500 करोड़ रुपए का निवेश कर चुकी है, किंतु इसके बावजूद एअर इंडिया वर्ष-दर-वर्ष नुकसान का सामना कर रही है। ऐसी स्थिति में एयरलाइन, उसमें कार्यरत कर्मचारियों की नौकरी और करदाताओं के पैसों को बचाने के लिए निजीकरण एकमात्र विकल्प बना। एअर इंडिया ने पैसों की जरूरत को पूरा करने के लिए अपना मुंबई का 23 महले का आइकॉनिक टावर भी किराये पर दे दिया है और उसे भी बेचने के लिए टेंडर मंगाया गया था। यह आफिस नरीमन पाइंट में समुद्र के किनारे 7,512 वर्ग मीटर में फैला हुआ है।
एक नजर में.. कंपनी की खराब होती हालत
- 2001 में सबसे पहले कंपनी को 57 करोड़ रुपए का घाटा हुआ था। तब विमानन मंत्रालय ने तत्कालीन प्रबंध निदेशक माइकल मास्केयरनहास को दोषी मानते हुए पद से हटा दिया था। बता दें कि द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान टाटा एयरलाइंस के विमानों ने सामान ले जाने से लेकर शरणार्थियों की जान बचाने में अहम भूमिका निभाई थी।
- साल 2007 की बात है, केंद्र सरकार ने एअर इंडिया में इंडियन एयरलाइंस का विलय कर दिया। दोनों कंपनियों के विलय के वक्त संयुक्त घाटा 771 करोड़ रुपए का था, विलय से पहले इंडियन एयरलाइंस महज 230 करोड़ रुपए के घाटे में थी। जबकि एअर इंडिया विलय से पूर्व करीब 541 करोड़ रुपए नुकसान में थी। जानकार मानते हैं कि विलय ने कंपनी का बंटाधार कर दिया।
- सरकार दावा कर रही थी कि विलय के बाद जो एक कंपनी बनेगी, वह हर साल 6 अरब का लाभ कमा सकेगी, लेकिन ऐसा हुआ नहीं। विलय के बाद कंपनी का घाटा लगातार बढ़ता गया। फिर घाटे को कम करने के लिए कंपनी ने लोन लेना शुरू किया, और फिर कर्ज में कंपनी डूबती गई।
- साल 2007-08 में 2226 करोड़ रुपए, 2008-09 में 7200 करोड़ रुपए, 2009-10 में घाटा बढ़कर 12,000 करोड़ रुपए हो गया। यह आंकड़ा और ज्यादा होता, लेकिन 2009 में कर्ज घटाने के लिए एअर इंडिया ने अपने कुछ विमान भी बेच दिए थे। एअर इंडिया ने घाटे की भरपाई के लिए अपने तीन एयरबस 300 और एक बोइंग 747-300 को 2009 में बेच दिया था। इसके बाद मार्च 2011 में कंपनी का कर्ज बढ़कर 42600 करोड़ रुपए और परिचालन घाटा 22000 करोड़ रुपए का हुआ था।
- 2007 के बाद पहली बार वित्त वर्ष 2017 में एअर इंडिया को 105 करोड़ रुपए का मुनाफा हुआ था। साल 2018 में एअर इंडिया के पास सिर्फ 13.3 प्रतिशत मार्केट शेयर था या सिर्फ 45.06 लाख पैसेंजर्स थे।
वर्तमान में एअर इंडिया के पास क्या है?
एअर इंडिया (स्टार एलायंस) सितंबर 2020 तक 39 देशों में 57 डोमेस्टिक और 58 अंतर्राष्ट्रीय डेस्टिनेशन पर सेवा दे रही हैं। वर्तमान में एअर इंडिया के बेड़े में कुल 127 विमान और एयर इंडिया एक्सप्रेस के बेड़े में कुल 25 विमान मौजूद हैं। इसमें एअर इंडिया के 4 बोइंग 747-400 जंबोजेट विमानों को शामिल नहीं किया गया है, क्योंकि एअर इंडिया के खरीदार को ये बोइंग विमान नहीं दिये जाएंगे। इसके अलावा एयर इंडिया के पास बिल्डिंग्स के रूप में कुछ अचल संपत्ति भी है, जिसे सरकार अपने पास बरकरार रखेगी। 2019 तक कंपनी के पास 9,993 कर्मचारी कार्यरत थे।
गिरते वैल्यूएशन के कारण बंद हो सकती है कंपनी
एअर इंडिया के एक पूर्व अधिकारी के मुताबिक एअर इंडिया अगर नहीं बिकती है तो हो सकता है कि आगे चलकर इसे बंद कर दिया जाए। क्योंकि अब हर दिन इसका वैल्यूएशन कम हो रहा है, मार्केट शेयर कम हो रहा है और साथ ही सरकार पैसे डालने के लिए अब तैयार नहीं है। हालांकि एअर इंडिया बिक जाए या बंद हो जाए, पर एक सवाल जो है वह यह कि इसे कैसे पेशेवर तरीके से मैनेज किया जाए? जो अभी तक सरकार नहीं कर पाई और जिसकी वजह से आज इसे बेचने की नौबत आई है। इस अधिकारी के मुताबिक एअर इंडिया की पहली दिक्कत तब शुरू हुई जब जे आरडी टाटा इसमें से निकल गए और सरकार इसमें मालिक हो गई।
अधिकारी के मुताबिक 1987 में पहली बार डिस इन्वेस्टमेंट कमीशन बना था। 1997-98 में पहली बार एअर इंडिया के विनिवेश की प्रक्रिया को शुरू करने के लिए वाजपेयी सरकार ने पहल की थी। हालांकि उस समय शरद यादव एविएशन मंत्री थे और उन्होंने यह कहकर इसे बेचने से मना किया एअर इंडिया में बहुत ज्यादा समस्या है। यही कारण है कि उस समय जो लोग खरीदने में दिलचस्पी रखते थे वे पीछे हट गए। क्योंकि सरकार के मंत्री ही इसके विरोधी थे।
अधिकारी के मुताबिक उस समय हिंदूजा और टाटा समूह ने हिस्सेदारी खरीदने में दिलचस्पी दिखाई थी। उसके बाद मामला ठप हो गया। लेकिन 2017 में एक बार फिर इसकी प्रोसेस चली। हालांकि तब यह दिक्कत आई कि सरकार केवल 74 प्रतिशत बेचने को राजी थी जिससे खरीदारों ने दिलचस्पी नहीं दिखाई। यह मामला 2018 तक चला लेकिन बात नहीं बनी। अब फिर से एअर इंडिया में 100 प्रतिशत हिस्सेदारी बिक रही है। हो सकता है कि इस शर्त पर और जो कर्ज है उसमें कुछ ढील मिलती है तो खरीदार दिलचस्पी ले सकते हैं।
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