132 साल पुराने किर्लोस्कर समूह के तीनों भाइयों में क्यों छिड़ी है जंग, डीड को मानने से सभी का इनकार, सेबी के पास पहुंचा मामला
अब सारा मामला स्पष्ट है। साल 2009 में तीनों किर्लोस्कर बंधुओं के परिवार के बीच किए गए सेटलमेंट के डीड के बारे में कुछ भी साफ नहीं हुआ था। तीनों भाइयों को जो कुछ मिला था, उससे वह नाखुश थे। 132 साल पुराने इस फैमिली बिजनेस में अब लड़ाई सेबी के दरवाजे तक पहुंच चुकी है।
संजय को मिली थी केबीएल की कमान
समझौते के मुताबिक संजय किर्लोस्कर को किर्लोस्कर ब्रदर्स लिमिटेड (केबीएल) की कमान मिल गई, जो कि साल 2010 तक ग्रुप की एक फ्लैगशिप कंपनी बन चुकी थी। इसकी स्थापना 1888 में हुई थी। तीनों भाइयों में सबसे बड़े अतुल किर्लोस्कर और सबसे छोटे राहुल किर्लोस्कर को लगभग सभी कंपनियों का चार्ज मिल गया। ये दोनों भाई एक ही टीम में हैं और उन्हें उनके परिवार की मुखिया और उनकी माता सुमन किर्लोस्कर का पूरा समर्थन प्राप्त है।
दस सालों में कंपनी के नियंत्रण को लेकर झगड़ा होता रहा है
तब से इन दस सालों में कंपनी के नियंत्रण को लेकर या इसके विस्तार को लेकर भाइयों के बीच पारिवारिक झगड़ा होता आया है। इसमें किर्लोस्कर बंधुओं के पिता चंद्रकांत किर्लोस्कर ने पुणे की एक प्रॉपर्टी को अपनी पत्नी के नाम वसीयत कर दी थी। साल 2009 में जब फैमिली सेटलमेंट का डीड हो रहा था, तो ऐसा लगा कि सभी भाई आपस में सहमत हैं और उनमें कोई प्रत्यक्ष तौर पर मनमुटाव नहीं देखा गया।
विजन के हिसाब से विस्तारित करने की थी योजना
इस परिवार को एक जानने वाले ने कहा कि इसके पीछे विचार यह था कि परिवार की इस विरासत को सभी भाई अलग-अलग अपने विजन के हिसाब से विस्तारित करेंगे। पर ऐसा हर किसी के दिमाग में नहीं चल रहा था। इस एग्रीमेंट में पहली दरार एक साल बाद 2010 में ही देखी जा चुकी थी, जब अतुल और राहुल तथा उनके एसोसिएट ने केबीएल की 13.5 प्रतिशत हिस्सेदारी किर्लोस्कर इंडस्ट्रीज को बेच दी। यह दोनों कंपनियां लिस्टेड हैं।
केबीएल में संजय की मेजोरिटी है
केबीएल में एक तरफ जहां संजय की मेजोरिटी है, वहीं दूसरी ओर किर्लोस्कर इंडस्ट्रीज का नियंत्रण अतुल और राहुल के हाथों में है। तो सवाल यह उठता है कि हिस्सेदारी बेचने के पीछे क्या मकसद था? कुछ इनसाइडर्स का कहना है कि संजय अपने अन्य भाइयों के दिमाग को पढने में फेल हो गए। इसके अलावा भी समय-समय पर और कई थियरीज सामने आती रही हैं। कुल मिलाकर एक दशक बाद भाइयों का आपसी झगड़ा अब एक नए मोड़ पर पहुंच चुका है।
अब सेबी की जांच के अधीन है मामला
कंपनी की हिस्सेदारी बेचने का यह मामला अब सेबी की जांच के अधीन है। क्योंकि इस पर इनसाइडर ट्रेडिंग के आरोप लगे हैं। इसमें कुछ आरोप तो काफी गंभीर हैं। किर्लोस्कर इंडस्ट्रीज ने बाजार नियामक को एक ईमेल कर कहा है कि संजय ने सेबी को ट्रांजेक्शन की जांच करने के लिए दबाव बनाया है। इस मुद्दे पर दोनों पक्ष चुप हैं और कुछ बोल नहीं रहे हैं। हालांकि सब कुछ नियमों के मुताबिक हुआ है।
संजय की पत्नी का कोई भी ट्रांजेक्शन सही नहीं
केबीएल के प्रतिनिधि ने बताया कि संजय की पत्नी के द्वारा किया गया कोई भी ट्रांजेक्शन सही नहीं है। क्योंकि इसमें एक इंडिविजुअल अकाउंट से एक दूसरी प्राइवेट लिमिटेड कंपनी में शेयर ट्रांसफर किए गए हैं। यह मौजूदा कानून में कहीं फिट नहीं बैठता है। भाइयों की आपसी लड़ाई एक नए दौर में पहुंच चुकी है। सूत्र बताते हैं कि सेबी अपनी जांच के आखिरी पड़ाव पर पहुंच चुकी है और इसके बारे में कोई भी ऑर्डर दो से तीन हफ्तों में आ सकता है।
एक की हार होगी दूसरे की जीत होगी
जाहिर है जब भी कोई नया ऑर्डर आएगा तो परिवार के एक पक्ष की जीत होगी और दूसरे पक्ष की हार होगी। इसी से पता चलता है कि यह लड़ाई फिर एक नए दौर में पहुंचेगी। परिवार के एक नजदीकी सूत्र का कहना है कि रेत मुठ्ठी से फिसल चुकी है। अगर भाइयों में आपसी झगड़ा सुलझा लेने की कोई मंशा होती तो पूर्व फाइनेंस सचिव डॉक्टर विजय केलकर की मध्यस्था का ऑफर नहीं ठुकरा दिया जाता। याद रहे कि 2017 में केलकर परिवार के इस झगड़े में सुलह कराने की कोशिश कर चुके हैं, पर उन्हें कामयाबी नहीं मिली।
सेबी के ऑर्डर पर टिकी है निगाहें
दूसरे शब्दों में सेबी का जो भी ऑर्डर आएगा तो हारनेवाला पक्ष अपील जरूर करेगा। यह लड़ाई आगे जारी रहनेवाली है और आगे कई मोर्चों पर लड़ी जाएगी। पुणे की पुश्तैनी संपत्ति के अलावा परिवार का घर भी झगड़े के दायरे में है। यही नहीं, ग्रुप के ट्रेडमार्क और कॉपी राइट को लेकर भी झगड़े चल रहे हैं। इसके अतिरिक्त अतुल और राहुल केबीएल का मिस मैनेजमेंट करने के आरोप में संजय को एनसीएलटी में घसीट चुके हैं।
संजय ने दाखिल किया है केस
इसके जवाब में संजय ने अपने दोनों भाइयों के खिलाफ केस दाखिल किया है और आरोप लगाया है कि उनके दोनों भाई पारिवारिक डीड के क्लॉज को नहीं मान रहे हैं। अतुल और राहुल को उनकी मां सुमन के अलावा उनके चचेरे भाई विक्रम किर्लोस्कर जो कि टोयोटा किर्लोस्कर मोटर के वाइस चेयरमैन हैं, का समर्थन प्राप्त है। वास्तव में इस लड़ाई में संजय बिलकुल अकेले पड़ते दिखाई दे रहे हैं।
डीड तो बस एक डाक्यूमेंट होता है
इंडियन स्कूल ऑफ बिजनेस के ईडी कविल रामचंद्रन बताते हैं कि डीड बस एक डाक्यूमेंट होता है। अगर इसके क्लॉज को पूरा करने का कमिटमेंट न हो तो यह डॉक्यूमेंट बेकार है। कमिटमेंट तभी आता है जब सभी पक्षों में आपसी विश्वास हो। अगर पूरे किर्लोस्कर कंपनी की बात की जाए तो इस आपसी झगड़े से ग्रुप का नुकसान हुआ है। सभी भाइयों में आपसी मतभेद बहुत पुराना है।
पुरानी है भाइयों की दुश्मनी
यह कोई पहली बार नहीं है कि जब सभी भाई इस तरह से एक दूसरे के ऊपर क्रोधित होते हैं, उनसे जलते हैं और परिवार के बिजनेस पर एक दाग लगाते हैं। आज परिस्थिति यह है कि आपसी भाइयों के आरोप के दौर में किर्लोस्कर फैमिली की पांचवीं पीढ़ी आपस में एक दूसरे के बिजनेस की दुश्मन बन चुकी है। परंतु यह भी देखा जा रहा है कि 1888 में लक्ष्मण राव किर्लोस्कर द्वारा स्थापित इस ग्रुप का नाम उसी शान के साथ लिया जाएगा जब भी कभी भारत के बिजनेस फैमिली की चर्चा होगी। 132 सालों के अपने शानदार इतिहास में इस ग्रुप ने अनेकों कीर्तिमान स्थापित किए हैं।
1958 में सबसे पहले इस ग्रुप ने की थी एक्सपोर्ट की शुरुआत
1958 में इस ग्रुप ने सबसे पहले एक्सपोर्ट की शुरुआत की थी। 1960 में इस ग्रुप ने कमिंस के साथ एक संयुक्त उपक्रम स्थापित किया जो कि विश्व भर में पंप और इंजन बनाने की अग्रणी निर्माता है। एक तरफ विश्व के पांच देशों में मैन्युफैक्चरिंग प्लांट लगाने के साथ-साथ केबीएल पंप इंडस्ट्री में अग्रणी प्लेयर बना हुआ है, तो दूसरी ओर बीते दस सालों में इस ग्रुप का दबदबा थोड़ा कम हो गया है।
15 हजार करोड़ का है कारोबार
केबीएल वेबसाइट के मुताबिक किर्लोस्कर ग्रुप का वर्तमान में कारोबार 2.1 अरब डॉलर (15 हजार करोड़ रुपए )है। इसमें 2017 की तुलना में 3.5 अरब डॉलर की गिरावट आई है। ग्रुप के पास दर्जनों कंपनियां हैं। इसमें से पांच लिस्टेड हैं जिनका कुल कारोबार वित्त वर्ष 2020 तक 11 हजार करोड़ रुपए का है।
सदस्यों को अधिकार देने के लिए बना था डीड
2009 में डीड का उद्देश्य यह था कि परिवार के सदस्यों को अधिकार दिया जाए कि वे नए उभरते हुए सेक्टर्स में बिजनेस को डाइवर्सिफाई करें। अतुल और राहुल द्वारा जिन कंपनियों को चलाया जाता है उनका टर्नओवर वित्त वर्ष 2020 के दौरान 3,379 करोड़ रुपए रहा है। जबकि केबीएल का टर्नओवर 3,135 करोड़ रुपए रहा है।
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